2025-09-21

खेती को बंदरों के आतंक से बचाने की पहल, इस सेंटर में 80 हजार बंदरों की हो चुकी नसबंदी

रैबार डेस्क: कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें बंदरों की बड़ी टोली खेतों में ऊधम मचाती दिख रही थी। उत्तराखंड में ऐसी तस्वीरें आ हो चुकी हैं। बंदरों के आतंक से खेती को नुकसान के मुद्दे पर विधानसभा में भी चर्चा की गई। ऐसे में सवाल उठता है कि समाधान क्या है। इसके लिए बंदरों की नसबंदी का रास्ता अपनाया जा रहा है।

खेती पर बंदरों का आतंक

मानव जीवन और संपत्ति को खतरा पहुंचा रहे बंदरों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए हरिद्वार के रसियाबाद क्षेत्र में स्थित अत्याधुनिक नसबंदी केंद्र चलाया जा रहा है जहां अब तक 80,000 से अधिक बंदरों की नसबंदी कराई है। 2015 में हरिद्वार-नजीबाबाद मार्ग पर स्थापित इस केंद्र में एक विशेष ऑपरेशन थिएटर बनाया गया है जहां मुख्य रूप से गढ़वाल के जिलों से पकड़े गए बंदरों की नसबंदी की जाती है। वन विभाग की एसडीओ पूनम के अनुसार, अब तक केंद्र में 98,000 बंदरों को लाया गया है, जिनमें से लगभग 80,000 बंदरों की नसबंदी करके उन्हें वापस जंगल में छोड़ दिया गया है। चालू वित्तीय वर्ष 2024-2025 में ही अब तक लगभग 14,000 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है।

Monkey Sterilization Center Haridwar
बंदरों का नसबंदी ऑपरेशन थिएटर

केंद्र में 12 लोगों की एक टीम कार्यरत है, जिसमें दो वरिष्ठ डॉक्टर और 10 कर्मचारी शामिल हैं जो बंदरों को पकड़ते हैं, उनकी नसबंदी करते हैं और फिर उन्हें जंगल में छोड़ देते हैं। केंद्र में एक साथ 300 बंदरों को रखने की क्षमता है। केंद्र में तैनात पशु चिकित्सक डॉ. प्रेमा ने बताया कि बंदरों की नसबंदी के दौरान हर पहलू का ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया के तहत, सबसे पहले बंदरों की जांच की जाती है और देखा जाता है कि क्या बंदर को कोई बीमारी है या नहीं। यदि मादा बंदर गर्भवती है, तो पूरी सावधानी के साथ उसे वहीं छोड़ दिया जाता है जहां से उसे पकड़ा गया था, और यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि वह अपने झुंड से अलग न हो।

किसानों के लिए सिरदर्द बन चुके इन बंदरों की संख्या पर लगाम लगाने के लिए नसबंदी की पहल अच्छे नतीजे दिखा रही है। जानकारों की मानें तो साल 2022 में इस क्षेत्र के आसपास बंदरों की संख्या डेढ़ लाख थी जो अब घटकर 1 लाख 10 हजार रह गई है। उम्मीद है कि इनकी संख्या को सीमित करने में 7-8 साल लग सकते हैं। लेकिन जरूरत है कि हर क्षेत्र में ऐसे नसबंदी केंद्र बढ़ाए जाएं।

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