ब्राजील की फर्नांडा को पारिवारिक विवाद का देवभूमि में मिला समाधान, आध्यात्मिक शांति के लिए नंगे पैरों से की शीतकालीन चारधाम यात्रा
रैबार डेस्क: देवभूमि उत्तराखंड के देवत्व, आध्यात्मिक शक्ति का ब्राजील की फर्नांडा पर ऐसा असर हुआ कि वह नंगे पैर साड़ी में चारोंधामों की शीतकालीन यात्रा पर निकल पड़ी। चारधामों के शीतकालीन पूजा स्थलों के महत्व पर भी फर्नांडा ने स्थानीय लोगों, पंडा पुजारियों से भी जानकारी हासिल की और एक अलग अहसास किया।
ब्राजील की रहने वाली 35 वर्षीय फर्नांडा पेशे से अधिवक्ता है। उसकी 10 वर्ष की बेटी भी है। फर्नांडा की मानें तो पारिवारिक दिक्कतों के बीच आत्मशांति के लिए उन्होंने उत्तराखंड का नाम सुना था। इसलिए वह भारत आई और हरिद्वार पहुंची। उन्हें उत्तराखंड में आध्यात्मिक शांति के लिए हिमालय में चार धामों की यात्रा करनी थी। लेकिन ये धाम तो शीतकाल में बंद हो जाते हैं। फर्नाडा ने बताया कि उसे फिर शीतकालीन यात्रा स्थलों को लेकर जानकारी मिली।
उत्तराखंड के संस्कारों से फर्नांडा इतनी प्रभावित हुई कि बिना जूते चप्पल के ही सादी साड़ी में पांच दिसंबर को यमुनोत्री के शीतकालीन पूजा स्थल खरसाली पहुंची। यहां पूजा दर्शनों के बाद गंगोत्री की शीतकालीन पूजा स्थल मुखबा गांव पहुंची। हर्षिल होते हुए केदारनाथ की शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ के बाद ज्योतिर्मठ के नृसिंह मंदिर व पांडुकेश्वर के योगध्यान बद्री मंदिर पहुंची।

धोती-साड़ी, सिर में पल्लू, मंदिरों में दंडवत प्रणाम के साथ पूजा परंपराओं का पूरी तरह निर्वहन करने के दौरान उनसे जो भी मिला वह उनकी भक्ति की सराहना करने लगा। हालांकि उन्हें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का ही ज्ञान होने के कारण आम लोगों से बातचीत में दिक्कतें हुई फर्नाडा का कहना है कि उत्तराखंड के मंदिरों के निर्माण की शैली उन्हें काफी पसंद आई है। फर्नांडा का कहना है कि ऊखीमठ में उनके पारिवारिक विवाद का समाधान भी उनको बताया गया है।
फर्नांडा के साथ यात्रा कर रहे दरभंगा बिहार के रहने वाले सुजीत कुमार चौधरी का कहना है कि फर्नाडा प्रतिदिन स्नान के बाद ही मंदिरों के दर्शन करती थी। वह माथे पर पूजा का तिलक लगाने के साथ पुजारी पुरोहितों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती थी। उसने अब ज्योतिर्मठ में प्रण लिया है कि वह अब शाकाहारी जीवन बिताएगी। ज्योतिर्मठ के प्रभारी दंडी स्वामी मुकुंदानंद ब्रह्मचारी का कहना है कि फर्नाडा हिंदू धर्म से प्रभावित हुई है। वह उत्तराखंड के चारधामों में शीतकालीन यात्रा पर आई है। पूरी तरह धार्मिक परंपराओं मान्यताओं के निर्वहन के साथ यात्रा की है। वह यहां की धार्मिक मान्यताओं का गहराई से अध्ययन भी कर रही है। इसे अपने जीवन में उतार भी रही है।
