2025-10-08

पहाड़ के गावों ने लागू किया खुद का भू कानून, गांव में लगाई जमीनों की खरीद फरोख्त पर पाबंदी

रैबार डेस्क:   उत्तराखंड में  सख्त भू कानून लागू करने की मांग लंबे समय से उठ रही है। सरकार भले ही भू कानून समिति की रिपोर्ट पर कुंडली मारकर बैठी हो, लेकिन पहाड़ के कुछ सजग ग्रामीणों ने खुद से पहल करते हुए अपना भू कानून लागू कर दिया है। टिहरी जिले के कठूड़ और घरगांव में ग्रामीणों ने जमीनों की खरीद फरोख्त पर पाबंदी लगा दी है। ग्रामीणों ने संकल्प लिया है कि वो अपनी जमीनें किसी को नहीं बेचेंगे।

टिहरी जिले के चंबा ब्लॉक के अकरिया धार पट्टी के कठूड़ गांव में लगा एक बोर्ड खासी चर्चा का विषय बना है। इस बोर्ड में लिखा है कि ग्राम पंचायत में जमीन की खरीद फरोख्त करनापूर्णतया प्रतिबंधित है।  गांव की जमीन किसी भी हाल में बाहरी लोगों को नहीं बेची जाएगी। जो बिचौलिया जमीनों की खऱीद फरोख्त करते पाया गया उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बीते दिनों कठूड़ गांव में एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें ग्राम प्रधान विमला देवी की अध्यक्षता में गांव के लोगों ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है। स्थानीयों का कहना है कि बाहरी लोगों द्वारा बिचौलियों के माध्यम से गांव की जमीन खरीदने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ का प्रलोभन देकर उनकी जमीनों को कब्जाने की कोशिश की जा रही है। जिससे उनके गांव के संसाधनों और पारंपरिक संस्कृति को खतरा हो सकता है। जिसके चलते ये फैसला लिया गया है।

ग्राम पंचायत कठूड़ में लगा बोर्ड

कठूड़ गांव के फैसले का असर दूसरे गांवों में भी दिखने लगा है। नरेंद्र नगर के घरगांव में भी ऐसे ही बोर्ड देखे जा सकते हैं। इनमें लिखा है कि ग्राम पंचायत घरगांव में जमीनों की खरीद फरोख्त करनेपर पूर्ण पाबंदी लगाई गई है। जमीनों का सौदा करने वाले बिचौलियों के खिलाफ सामाजिक कार्रवाई की जाएगी।

ग्राम पंचायत घरगांव में लगा बोर्ड

बता दें कि उत्तराखंड में हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून की मांग हो रही है। तमाम सामाजिक संगठन इसके लिए आंदोलनरत हैं। सरकार ने भू कानून पर विचार करने के लिए समिति बनाई है, जिसकी रिपोर्ट सरकार के पास है। हालांकि सरकार ने इस विषय में अब तककोई फैसला नहीं लिया है। पहाड़ी इलाकों में भू माफियाओं के सक्रिय होने से बड़े पैमाने पर जमीनों की खऱीद फरोख्त हो रही है। इससे पहाड़ों में न सिर्फ डेमोग्राफी बदल रही है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और हक हकूकों पर भी असर हो रहा है।

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