भू कानून की मांग से तेज हुई हलचल, सोशल मीडिया पर उठी मांग से सियासी दलों को संजीवनी

रैबार डेस्क: उत्तराखंड में इन दिनों सोशल मीडिया का एक आंदोलन खामोशी से बड़े फैसले की इबारत लिख रहा है। युवाओं द्वारा सोशल मीडिया पर शुरू की गई इस मुहिम को समाज के गणमान्य लोगों, विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों,और राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है। यह आंदोलन है उत्तराखंड के लिए सख्त भू कानून (Uttarakhand Land Law) की मांग का। इस मांग ने सुस्त पड़े राजनीतिक दलों को संजीवनी देने का काम भी किया है।
उत्तराखंड में भू कानून की मांग आज हर किसी की जुबान पर है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब से शुरू हुई ये मुहिम अब असर दिखाने लगी है। जनप्रतिनिधियों से लोग इस बारे में सवाल पूछने लगे हैं। हर तरफ एक ही आवाज है, उत्तराखंड मांगे भू कानून। ट्विटर पर हैशटेग शुरू करने वाले विपिन घिल्डियाल बताते हैं कि “भू कानून, चकबंदी व कृषि-बागवानी ये उत्तराखंड की अस्मिता से जुड़े हैं। और अगर हमारी संस्कृति, हमारी जमीन, हमारी हस्ती, हमारी खेती को बचाना है तो हिमाचल की तर्ज पर सख्त भू कानून लागू करना ही होगा” विपिन बताते हैं कि उन्होंने उत्तराखंडियत की इसी सोच के साथ युवाओं को एजकुट होने की आवाज दी। और हैशटैग #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून के साथ अभियान छेड़ा। चंद दिनों में ही ये अभियान आग की तरह फैलने लगा। समाजसेवी, बुद्धिजीवी, पर्यावरणविद, कलाकार, राजनेता, सभी लोग इस मुहिम का समर्थन करने लगे। देखते ही देखते ट्विटर फेसबुक, इंस्टा पर यह ट्रेंड करने लगा।एक हफ्ते से कम समय मे लाखों ट्वीट और रीट्वीट इस पर हो चुके हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम पर भी यह धूम मचा रहा है।

विपिन की इस सोच को अल्मोड़ा के शैलेंद्र जोशी और देहरादून के शंकर सागर का भी समर्थन मिला है। शंकर सागर लंबे समय से सख्त भू कानून की मांग करते आ रहे हैं। शैलेंद्र जोशी कहते हैं कि विकास के नाम पर जमीन की लूट बिल्कुल बर्दाश्त करने वाली बात नहीं है। इसके खिलाफ संगठित होकर आवाज बुलंद की जा रही है।
दिग्गजों का समर्थन
भू कानून को लेकर युवाओं की मांग के समर्थन में सामाजिक क्षेत्र की कई हस्तियां आगे आई हैं। पद्मभूषण अनिल जोशी कहते हैं कि युवाओं को संगठित होकर अपनी इस मांग को अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। सरकार को भू कानून में हुए संशोधनों को वापस लेने पर बाध्य करना चाहिए। उत्तराखंड के जल, जंगल, जमीन, संस्कृति औऱ पहचान की रक्षा के लिए मजबूत भू कानून जरूरी है। पद्मश्री यशोधर मठपाल कहते है कि उत्तराखंड में भू माफियाओं पर लगाम कसने के लिए सख्त कानून जरूरी है। सरकार को चाहिए कि राज्य में बाहरी लोगों को एक निश्चित सीमा से अधिक भूमि खरीद पर पाबंदी होनी चाहिए। कृषि भूमि की खरीद पर पूरी रोक होना चाहिए।
पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एस एसनेगी, जो हिमाचल कैडर के आईएफएस रहे हैं और करीब 25 साल की सेवा वहां दे चुके हैं, वो कहते हैं कि हिमाचल में कृषि भूमि को संरक्षण और हिमाचल की कल्चरल आइडेंटिटी को मजबूती सख्त भू कानून के जरिए ही मिले है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू कानून के सख्त प्रावधान लागू करने की मांग बिल्कुल जायज है। अफने मधुर स्वरों से करोड़ो लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाली स्वरागिनी उप्रेती सिस्टर्स ज्योति उप्रेती सती औऱ नीरजा उप्रेती भी भू कानन के समर्थन में हैं।
भू कानून की मांग पर राजनीतिक दलों ने भी तेवर पैने कर लिए हैं। उत्तराखंड क्रांति दल ने भू कानून के समर्थन में परेड ग्राउंड में विशाल रैली की घोषणा की है। पूर्व सीएम हरीश रावत भी खुलकर कह रहे हैं कि अघर उकी पार्टी सत्ता में आती है तो भू कानून के सख्त प्रावधान लागू किए जाएंगे।
क्या है भू कानून
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 में अन्य राज्यों के लोग यहां 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे। 2007 में खंडूड़ी सराकर ने इस कानून में संशोधन किया और जमीन खरीदने की सीमा को घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया। साल 2018 में राज्य सरकार ने इन्वेस्टर्स के हितों के मकसद से भू कानून में संशोधन किया। सरकार ने उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 में धारा 143(क) और धारा 154 (2) जोड़ दी। जिसके तहत पर्वतीय जिलों में गैर उत्तराखंड निवासी के लिए भूमि खरीद की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी।