पिता का देहांत, मां लापता, घर की छत टूटी, मुश्किल जिंदगी जी रही चमोली की ये बेटियां, आपकी मदद की दरकार

रैबार डेस्क: बरसात के मौसम में जर्जर घर कभी भी बड़े हादसे को दावत दे सकता है। पिता का साया सर से उठने के बाद अब कौन सहारा बने? मां का डेढ़ साल से कोई अता पता नहीं। ऐसे में 14 साल की लवली और 10 साल की आरुषि किसके सहारे रहें ? किसे अपना दर्द बताएं और किससे मदद की गुहार लगाएं?
कुदरत की ये क्रूर कहानी चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के खैनुरी गांव की है। यहां एक जर्जर घर में रही 14 साल की लवली और 10 साल की आरुषि अपने छोटे भाई के साथ किसी तरह जिंदगी काट रही हैं। उनकी मां डेढ़ साल पहले लापता हो गई थी, जिनका आज तक कोई पता नहीं चल सका है। फिर भी पहाड़ की ये अडिग बेटियां अपनी शिक्षा के सपने को साकार कर रही थी। पिता के सहारे हौसले के साथ जी रही थी, लेकिन डेढ़ महीने पहले पिता की हार्ट अटैक से मौत के बाद मानों उनकी दुनिया ही उजड़ गई। फौजी बनने का सपना लिए आरुषि पिता को याद करते करते फफक फफक कर रो उठती है। लवली ढांढस बंधाने की कोशिश करती है, लेकिन उसकी हिम्मत भी जवाब दे जाती है।
इन बच्चों की दर्दनाक कहानी यहीं नहीं रुकती। लवली के ताऊ वीरेंद्र सिंह किसी तरह अपने बच्चों के साथ साथ उनकी देखरेख भी करते हैं। लेकिन उनकी भी स्थिति ऐसी नहीं है कि लवली के लिए कुछ अच्छा कर पाएं। लवली का घर जर्जर है। बरसात में खतरा और बढ़ गया है। आगे पता नहीं क्या होगा। पत्रकार लोकेश रावत ने इन बच्चियों की खबर दिखाई तो कुछ संवेदनशील लोगों ने मदद का हाथ बढ़ाया, लेकिन लवली और आरुषि को सिर्फ कुछ दिनों के राशन पानी की जरूरत तो नहीं?
भविष्य एक बड़ा सवाल लेकर खड़ा है। दोनो बहनों की पढ़ाई कैसे पूरी होगी। मां बाप का साया एक तरह से उठ गया, अब घर की छत उड़ रही है। लवली के ताऊ सरकार और शासन प्रशासन से मदद की गुहार लगाते हुए कहते हैं, सबसे पहले अगर हो सके तो बच्चों के लिए पक्की छत का इंतजाम हो जाए। समय समय पर गांव वाले खाने पीने में मदद करते हैं, लेकिन ये सिलसिया स्थाई नहीं है। लवली पढञना लिखना चाहती हैं, डॉक्टर बनना चाहती हैं। इसी तरह आरुषि फौज में जाना चाहती हैं। लेकिन सवाल यही कि क्या इन बच्चियों की समय से मदद हो पाएगी?
जिला प्रशासन के संज्ञान में बात आई है, लेकिन सरकारी फाइलों की रफ्तार कितनी तेज है ये सभी जानते हैं। हमारी सभी जिम्मेदार लोगों से अपील है, कृपया इन बच्चियों की मदद के लिए आगे आएं। सिर्फ राशन पानी नहीं, बच्चियों के सपनों को साकार करने के लिए उन्हें हर सरकारी योजना का फौरन लाभ दिया जाए। ताकि ये बच्चियां आत्मनिर्भर बन कर हौसले की नई उड़ान भर सकें।