2024-04-25

6 महीने जगलों में जीवन बिताएंगे घुमंतू चरवाहे,भेड़ बकरी लेकर निचले इलाकों में आने का सिलसिला शुरू

uttarakhand ke ghumntu charwahe

रैबार डेस्क : उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सर्दियां बढ़ने लगी हैं। ऊंची चोटियों ने बर्फ की चादर ओढ़ ली है। इन क्षेत्रों में मौसम की खामोशी सी छा रही है। इसलिए इस इकोसिस्टम में जी रहे लोगों का जीवन भी प्रभावित होता है। हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले भेड़ बकरी पालक हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे है। गर्मियों के दिनों में ये चरवाहे अपने घर के आसपास के बुग्यालों में भेड़ बकरियों के बीच अपना वक्त गुजारते हैं। लेकिन जैसे ही सर्दियां बढ़ती हैं करीब करीब 6 महीने इन गड़रियों को घुमंतू (Nomads life of Himalayan Shepherds in Uttarakhand) जीवन जीना पड़ता है।  

आजकल उच्च हिमालयी क्षेत्रों से भेड़ बकरी पालकों के निचले इलाकों में आने का सिलसिला शुरू हो गया है। हजारों भेड़ बकरियों के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग 6 महीने तक निचले इलाकों में जीवनयापन करने के लिए आने लगे हैं। उच्च हिमालय में सबसे अधिक ऊंचाई तक भेड़-बकरियों के साथ ये ही पहुंचते हैं। उच्च हिमालयी सारे दर्रो की जानकारी इनके पास होता है। हिमाचल प्रदेश से लेकर टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ के भेड़ पालक उच्च बुग्यालों को छोड़कर निचले जंगलों तक पहुंच जाते हैं।

ऐसे कटता है चरवाहों का घुमंतू जीवन

हिमालयी जीवन, मौसम और माइग्रेशन की जानकारी होने के साथ साथ इन घुमंतू चरवाहों में परिस्थितियों का अनुकूलन बेहत शानदार रहता है। गर्मियों में ये अपने घर के आसपास के बुग्यालों में जीवन जीते हैं। वहां भी बुग्यालों में रहते हैं। लेकिन तब इन्हें कभी हफ्तेभर में या महीने में अपने परिवार के साथ घर पर वक्त बिताने का मौका मिल जाता है।

लेकिन सर्दियों में करीब 6 महीने तक ये चरवाहे परिवार से दूर रहते हैं। चरवाहों के एक समूह में करीब 3 से चार लोग रहते हैं। ये जंगल में अपने टैंट लगाकर वही रात बिताते हैं, अगले दिन भेड़ बकरियों को चराते हुए दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं। एक झुंड में हजारों भेड़ बकरियां होती हैं। सबसे खास बात ये है कि भेड़ बकरियों के झुंड की रखवाली के लिए भोटिया नस्ल के कुत्ते इनके साथ होते हैं। ये कुत्ते भेड़ बकरियों की न सिर्फ इंसानों से रक्षा करते हैं, बल्कि इकी हिफाजत के लिए जंगली जानवरों से भी भिड़ जाते हैं। खानाबदोश जीवन जीने के दौरान कई बार इ चरवाहों की आमदनी भी हो जाती है। इच्छुक लोगों को भेड़ बकरी की बिक्री कर, या ऊन बेचकर ये अपने लिए कुछ रकम जुटा लेते हैं। इस तरह 6 महीने इन चरवाहों का खानाबदोश जीवन कटता है।

हमारी संस्कृति का अंग रहे ये चरवाहे सरकारी उपेक्षा से आहत नजर भी आते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी से भेड़-बकरी पालन का काम करने वाले चरवाहे कहते हैं कि उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी योजनाएं उन तक पहुंच नहीं पाती। सर्दियों में उके लिए विस्थापन और पुनर्वास की व्यवस्थाएं नहीं होती। उनके लिए अलग से कोई सोचता ही नहीं है। लिहाजा उन्हें खानाबदोश जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed