पलायन को मात देकर तरक्की की कहानी लिख रहा आदर्श गांव सारकोट, जहां एक भी खेत बंजर नहीं

रैबार डेस्क चमोली जिले में गैरसैंण से सटा सारकोट गांव इन दिनों चर्चा में है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गांव को गोद लिया है, तब से गांव की तस्वीर बदली नजर आ रही है। सारकोट में क्या बदलाव आए हैं, बता रहे हैं स्थानीय निवासी और राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट व भाजपा उत्तराखंड के प्रवक्ता सतीश लखेड़ा।
आदर्श ग्राम सारकोट (गैरसैण) कृषि , पशुपालन में अग्रणी , सैन्य बहुल गाँव सारकोट और सहकारिता का जीवंत उदाहरण।
उत्तराखंड में तेज़ी से होते पलायन के कारण जहाँ भूतहा गाँव , घोष्ट विलेज जैसे शब्द गत कुछ वर्षों में प्रचलन में आए हैं , ऐसे में सारकोट ग्राम स्वराज की उम्मीद जगाता है । यहां कोई खेत बंजर नहीं , किसी घर पर पलायन वाला ताला नहीं , हर गौशाला में पशुधन।
जबसे मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने गाँव को गोद लिया, सरकारी विभागों ने गाँव में जाकर संवाद किया तो जागरूक , प्रगतिशील और मेहनतकश ग्रामीणों ने सरकार की योजनाओं को अंगीकार किया।
नक़दी फसल , डेयरी उत्पादन , मशरूम उत्पादन और पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन से आर्थिकी में बदलाव आया है । सेब, कीवी , आलूबुखारा , नाशपाती जैसे फलदार पेड़ों का रोपण आगामी वर्षों में सुखद परिणाम देगा ।
आदर्श गाँव घोषित होने के बाद संपर्क मार्गों सहित मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त किया गया है । गर्मीणों की जागरूकता से कहीं भी कूड़ा और गंदगी नहीं दिखती ।
आकर्षित करता है पूरे गांव का एक ही तरह का रंग रोगन । सुख समृद्धि का प्रतीक दीवारों पर पीला रंग , दरवाजों चौखटों पर विराटता का नीला रंग , बॉर्डर पर शक्ति का प्रतीक लाल रंग और हमारी संस्कृति की प्रतीक एपण कला का समावेश बरबस ध्यान आकर्षित करता है ।
