पहाड़ का लाल: सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जॉब छोड़ मुर्गीपालन अपनाया, लाखों के लिए प्रेरणास्रोत बना अनुज
लॉकडाउन में जहां दुनिया थमी सी है। लेकिन एक युवा ऐसा भी है, जिसका फोन सुबह से कई बार घनघनाता है। वह हर कॉल को रिसीव करता है, डिमांड के मुताबिक डिलीवरी करता है, और फिर मुर्गीफार्म की साफ सफाई और देखभाल में जुट जाता है।
ये कहानी एक ऐसे शख्श की है जो शहरों में अच्छी खासी जॉब कर रहा था, लेकिन गांव की मिट्टी ने पुकार दी तो सबकुछ छोड़कर घर लौटा और आज स्वरोजगार अपनाकर लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है। इस शख्श का नाम है, अनुज बिष्ट।
पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक में डांग गांव का रहने वाले अनुज ने इंटर कॉलेज जखेटी से 12वीं करने के बाद दिल्ली का रुख किया, वहां सॉफ्टवेटर टेक्नोलॉजी का कोर्स किया, जॉब भी लगी, ठीक ठाक पैसे भी मिलने लगे लेकिन अनुज का सौभाग्य उसे अभी भी अपनी माटी से दूर किये था। अनुज के पिता फौज से रिटायर हैं, गांव में माता पिता का ख्याल रखने के लिए अनुज ने घर लौटने का फैसला किया और ये ठाना कि घर ने ही कुछ स्वरोजगार करेंगे।
अनुज कहते हैं कि शहरों में आप कितना भी कमा लो, बचत कुछ नहीं होती, ऊपर से प्रदूषण और बीमारियों को दावत, इससे अच्छा है अपने गांव में स्वरोजगार की तलाश करो। जितनी भी आमदनी होगी उसमे सन्तोष होगा, घर मे लोगों को काम मिलेगा तो पलायन रुकेगा पहाड़ संवरेगा।
इसी ध्येय के साथ अनुज ने 4 साल पहले डांग गांव में मुर्गीपालन में किस्मत आजमाने की सोची। नाबार्ड से लोन लिया और करीब 4 लाख रुपए की लागत से मुर्गीफार्म स्थापित किया। शुरुआत में बहुत दिक्कतें हुई, लेकिन संघर्ष का सुखद फल जरूर मिलता है। शुरुआत में अनुज ने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से व्हाइट चूजे मंगवाए, इनका व्यापार कुछ ठीक नहीं रहा, लेकिन अनुज ने हिम्मत नहीं हारी। अनुज ने सोचा व्हाइट चिकेन तो आम बात है, क्यों न जैविक प्रोडक्ट को आजमाया जाय। इसलिए पंतनगर से देसी मुर्गी के चूजे मंगवाए। देसी मुर्गी का पहाड़ में काफी चलन है, इसके चारे और रखरखाव पर कम खर्च होता है। चूंकि यह ऑर्गैनिक प्रोडक्ट है इसलिए इसकी डिमांड भी जबरदस्त है। यह प्रयोग चल निकला तो अनुज की मेहनत सफल होने लगी। अब करीब 3 साल से अनुज देसी मुर्गी, अंडों का व्यापार कर रहे हैं।
अनुज बताते हैं कि उनके फार्म की मुर्गियों व अंडों की डिमांड पौड़ी से लेकर कोटद्वार तक है। कभी कभी देहरादून से भी एकमुश्त डिमांड आ जाती है। लोकल मार्किट में भी 8 से 10 मुर्गी की रोज डिमांड रहती है। एक दिन में करीब 600 अंडे बिक जाते हैं। देसी मुर्गी की कीमत भी 800 से 1000 रुपए तक मिल जाती है। इस तरह अनुज को मुर्गीपालन से 50 से 60 हजार रुपए प्रतिमाह की बचत हो जाती है।
अनुज आज क्षेत्रीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं। अनुज की दिनचर्या बहुत व्यस्त रहती है, सुबह फोन पर आर्डर से लेकर डिलीवरी और उसके बाद मुर्गियों की देखभाल व चारे के प्रबंध, मेहनत का काम है। अनुज कहते हैं अच्छा होता कि कोई स्थानीय लड़के यहां साथ काम करते, लेकिन लोग उपलब्ध नहीं हुए तो इस काम के लिए एक नेपाली परिवार को रखना पड़ा।
अनुज स्वरोजगार के अन्य क्षेत्रों में भी प्रेरित करना चाहते हैं। स्थानीय मालू के पत्तों से पत्तल, दोने आदि बनाने के काम के लिए सहयोगी की तलाश में हैं। बार बार स्थानीय युवाओं से कहते हैं कि उनका साथ दो और स्वरोजगार से देवभूमि के गांवों की किस्मत बदलो।
कोरोना संकट में लाखों युवा पहाड़ लौट रहे हैं, ऐसे युवाओंके लिए अनुज जैसे लोग एक मिसाल हैं। उराखंड रैबार, स्वरोजगार से राज्य की तस्वीर बदलने में लगे ऐसे मेहनतकश युवाओं को सलाम करता है।।