नहीं टूटा शापित बंगले के मिथक, यहां रहकर कोई CM पूरा नहीं कर सका कार्यकाल
रैबार डेस्क: उत्तराखंड (Uttarakhand) की सियासत में मुख्यमंत्री का शापित बंगला बड़ी भूमिका निभाता है। आपको यकीन न हो पर न्यू कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास (Mukhyamantri Awas) के साथ जुड़ा ये मिथक बरकरार है। इस बंगले के साथ मिथक है कि जो भी सीएम इस आवास में रहा है, वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद इस मिथक को एक बार फिर से बल मिला है।
न्यू कैंट रोड पर 27 करोड़ की लागत से बना यह खूबसूरत बंगला पहाड़ी शैली में बना है। यह अपनी वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। लेकिन अपने साथ एक बुरा मिथक भी लेकर चल रहा है।
साल 2007 में जब जनरल बीसी खंडूड़ी सीएम बने तो उन्होंने अधूरे बने इसी बंगले को अपना ठिकाना बनाया। खंडूड़ी को 2009 में पद से हटना पड़ा । इसके बाद सीएम बने निशंक ने भी यहीं अपना आशियाना बनाया, 2010 में इसका जीर्णोद्धार किया गया। लेकिन बंगला मुख्यमंत्री का उद्धार नहीं कर सका। निशंक को भी चुनाव से 6 माह पहले ही पद से हटना पड़ा। साल 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी तो विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। बहुगुणा इसी बंगले में रहने लगे। लेकिन 2014 में उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा। बंगले के श्राप के डर से हरीश रावत अपने मुख्यमंत्री काल मे सीएम हाउस नहीं गए। उन्होंने बीजापुर गेस्ट हाउस को अपना ठिकाना बनाया।
साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम बने। तब उनसे बंगले के मिथक के बारे में पूछा गायाल तब त्रिवेंद्र ने कहा था कि मुख्यमंत्री आवास भी अच्छा है और उसका वास्तु भी। हां, जो पानी और पैसे की बर्बादी थी, वो उन्होंने ज़रूर खत्म कर दी। त्रिवेंद्र रावत का कहना है कि वो मिथकों पर नहीं, बल्कि काम पर यकीन रखते हैं
हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत बंगले में रहकर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और 4 साल के कार्यकाल के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।