कदम कदम पर डर्टी पॉलिटिक्स, मगर हर बार ईमान पर अडिग रहे त्रिवेंद्र
उत्तराखंड (Uttarakhand) में प्रचंड बहुमत की त्रिवेंद्र सरकार सफलता के साथ अपना कार्यकाल पूरा कर रही है। अब तक साढ़े तीन साल के कामकाम में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र (Trivendra Singh Rawat) एक सशक्त और साहसी फैसले लेने वाले मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। मगर उत्तराखंड की सियासी कुंडली ही कुछ ऐसी है कि यहां साजिशों का ताना बाना बुने बगैर काम नहीं चलता। सीएम त्रिवेंद्र के खिलाफ भी यही सब हो रहा है। मगर आमतौर पर कम मुस्कराने वाले त्रिवेंद्र सारे कुचक्रों को तोड़ते हुए बिंदास आगे बढ़ रहे हैं।
पिछले साढ़े तीन साल के दौरान सीएम ने जीरो टॉलरेंस का जो सबसे घातक शस्त्र अपनाया है, उससे इस क्षत्रिय ने कई दुर्विचारों और षढ़यंत्रों का संहार किया है। मार्च 2017 में जब 57 विधायकों के साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो लग रहा था कि त्रिवेंद्र की राह निष्कंटक होगी। लेकिन ऐसा सिर्फ लग ही रहा था, हो कुछ और रहा था। सरकार बनते ही भीतर के विरोधी सर उठाने लगे, लेकिन त्रिवेंद्र ने अपने सियासी चातुर्य से सबको शांत कर दिया। एक साल शानदार तरीके से गुजरा। मगर 2018 में साजिशों का जाल बिछाया गया। सीएम ने सचिवालय, विधानसभा, मुख्यमंत्री आवास पर अनाव्श्यक रूप से विचरण करने वाले सौदेबाजों, बिचौलियों पर लगाम लगा दी। ट्रांसफर पोस्टिंग के धंधे पर रोक लगा दी। इससे नंबर दो का काम से मोटी रकम कमाने वाले परेशान हो गए। सीएम को फंसाने के नए नए तरीके ढूंढे जाने लगे।
उत्तराखंड को लूटने वाले एक स्टिंगबाज ने सरकार को अस्थिर करने का पूरा प्लान बनाया। वह स्टिंगबाज किसी भी तरह सीएम, उनके रिश्तेदारों और भरोसेमंद अफसरों का स्टिंग करना चाहता था। कछ हद तक सफल भी हो गया था। मगर उसकी एक मुराद पूरी नहीं हो सकी। तथाकथित सौदेबाज पत्रकार चाहता था कि सीएम के भरोसमंद अफसरों और उनके रिश्तेदारों के हाथों में किसी भी तरह से नोटों की गड्डियां दिखा सके औऱ इसे सीएम से जोड़ सके। मगर उसका प्लान धरा का धरा रह गया। त्रिवेंद्र को शायद स्टिंगबाज के इरादे समझ में आ गए थे, इसलिए उसकी एंट्री पर बैन सा लग गया। स्टिंगबाज के सारे प्लान धरे के धरे रह गए। हालांकि उसने कुछ एक फुटेज इकट्ठा कर ली थी जो किसी काम की नहीं थी। मगर स्टिंगबाज इन्हीं फुटेज को तिल का ताड़ बनाकर सीएम के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी करता रहा। एक झूठ को सौ बार बोलकर उसे सच बनाने की कोशिश करता रहा। स्टिंगबाज की गिरप्तारी भी हो गई। तो उसने त्रिवेंद्र का झारखंड से लिंक जोड़ दिया। अदालतों में फर्जी मुकमदे दायर किए, जौ औंधे मुंह गिरे। सीएम की फर्जी रिश्तेदारी निकलवाई और घूस लेने का काल्पनिक मामला गढ़ा। इस बार स्टिंगबाज ने एक चतुर वकील को साथ लिया। छल प्रपंच से हाईकोर्ट में अपने पक्ष में फैसला करवा लिया। कोर्ट ने सीएम के खिलाफ एफआईआर के और सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। इस फैसले से हर कोई हैरान था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि हाईकोर्ट का फैसला समझ से परे है. सीएम को पार्टी बनाए बिना ही कैसे जांच के आदेश दे दिए? हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लग गया। स्टिंगबाज फिर औंधे मुंह गिरा। मगर यहां एक बात तो साबित हो गई कि त्रिवेंद्र की कमजोर लीगल टीम हाईकोर्ट में मुद्दे को सही ढग से नहीं रख पाई।
खैर स्टिंगबाज का खेल तो खत्म होता गया। लेकिन सोशल मीडिया पर त्रिवेंद्र के खिलाफ षढ़यंत्रों का अंबार सा लग गया। सीएम के एक हमशक्ल सत्य सिंह रावत को शराब की बोतल के साथ दिखाया गया। जबकि उक्त शख्स, जो बीएसएफ से रिटायर्ड हैं, एक विवाह समारोह में अपने घर में शराब के साथ दिख रहे थे। झूठ प्रचारित किया गया कि तस्वीरों में सीएम त्रिवेंद्र हैं, जो हाथ में शराब की बोतल पकड़े हैं। खैर इस झूठ का भंडाफोड़ खुद सत्य सिंह रावत ने आगे आकर कर दिया। सच्चाई पता लगी तो त्रिवेंद्र विरोधी बिल में दुबक गए। साजिशों का तानाबाना यहीं नहीं रुका। अब सीएम के बयानों को तोड़ मरोड़कर सोशल मीडिया पर डाला जाने लगा। माइनस 1 प्रतिशत बेरोजगारी वाला बयान हो या देश की प्रथम महिला श्रीमति कोविंद को किया संबोधन हो। सीएम की छवि खराब करने के लिए बयानों को तोड़मरोड़कर पेश किया गया।
मगर जिसका ईमान मजबूत हो वो इन चीजों की परवाह किए बिना बढ़ता चला जाता है। त्रिवेंद्र भी इन सबसे प्रभावित हुए बिना आगे बढ़ते रहे। बिना किसी के दबाव में आए बिना राज्य के हित में जो फैसला सही हो उसे लेने में त्रिवेंद्र हिचके नहीं। पार्टी के भीतर, पार्टी के बाहर, और दूसरे दलों से पार्टी में आए लोगों के साथ तालमेल बनाकर चलना त्रिवेंद्र का स्वभाव है। हालांकि जब भी किसी ने दबाव बनाने की कोशिश की तो त्रिवेंद्र सीएम पद की पावर का सही इस्तेमाल करने से नहीं चूके। भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के पुनर्गठन का फैसला इसकी एक बानगी भर है। देवस्थानम बोर्ड को लेकर त्रिवेंद्र के साहसी फैसले की चौतरफा सराहना होती है। जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करके त्रिवेंद्र ने पहले ही बहुत बड़ी लकीर विरोधियों के सामने खींच दी है।
सीएम त्रिवेंद्र भी कहते हैं कि साढ़े तीन साल में उनके खिलाफ तमाम तरह के षढ़यंत्र हुए हैं। भ्रष्टाचारी, अनैतिक और अराजक तत्व एखजुट होते रहे हैं, लेकिन वो (सीएम)पहले दिन से ही जीरो टॉलरेंस की नीति पर अडिग हैं। ऐसे कोई भी षढ़यंत्र उन्हें डिगा नहीं सकते, पूरे पांच साल अपने इरादों पर अडिग रहेंगे।