2024-05-02

क्या 132 साल बाद पुराने नाम से जाना जाएगा लैंसडौन? नाम बदलने के लिए सेना ने मांगा प्रस्ताव

lansdowne may be renamed as kalon danda

रैबार डेस्क: सेना की गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंट का मुख्यालय और प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लैंसडौन का नाम बदलने की तैयारी है। रक्षा मंत्रालय ने इस हेतु प्रस्ताव मांगा है।132 साल पहले ब्रिटिश शासन के दौरान हिल स्टेशन लैंसडाउन का ये नाम रखा गया था। खबरों के मुताबिक, लैंसडाउन का नया नाम कालौंडांडा हो सकता है। बहुत समय पहले लैंसडौन को कालौं का डांडा या कालौंडांडा के नाम से जाना जाता था। इससे पहले हेनरी पेटी फिट्जमॉरिस के नाम पर रखे गए लैंसडाउन चौक का नाम बदलकर गढ़वाल के राजा महाराजा प्रद्युम्न शाह चौक किया जा चुका है। (Lansdowne may be renamed as old name kalun danda)

दरअसल रक्षा मंत्रालय ने ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे गए नामों को बदलने के लिए उत्तराखंड सब एरिया के साथ सेना के अधिकारियों से प्रस्ताव मांगें हैं। स्थानीय स्तर पर लंबे समय से लैंसडौन का नाम बदलने की मांग होती आ रही है। इस संबंध में रक्षा मंत्रालय को भी पत्र भेजे जा चुके हैं। रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव पर अमल किया तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का नाम बदलकर ‘कालौं का डांडा (अंधेरे में डूबे पहाड़)’ हो जाएगा।  

उनसे ब्रिटिशकाल के समय के नामों के स्थान पर क्या नाम रखे जा सकते हैं, इस बारे में भी सुझाव देने को कहा गया है। बता दें कि स्थानीय स्तर पर लंबे समय से लैंसडौन का नाम बदलने की मांग होती आ रही है। स्थानीय लोग लैंसडौन का नाम कालौं का डांडा रखने की मांग करते आए हैं। इस संबंध में रक्षा मंत्रालय को भी पत्र भेजे जा चुके हैं।

गढ़वाली जवानों की वीरता और अद्वितीय रणकौशल से प्रभावित होकर 1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई। पांच मई 1887 को ले.कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुंची। उस समय लैंसडौन को कालौं का डांडा कहते थे। इस स्थान का नाम 21 सितंबर 1890 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन रखा गया। लैंसडौन नगर सैन्य छावनी क्षेत्र है, जो 608 हेक्टेयर में फैला है।

रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने कहा कि समय समय पर लोग जगहो के नाम बदलने की मांग करते हैं। ऐसे प्रस्तावों का रक्षा मंत्रालय परीक्षण करता है। सरकार द्वारा देश, काल और परिस्थितियों को देखकर प्रस्तावों पर विचार किया जाता है।

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