चतुर्थ नवरात्रि: दिन में 3 बार रूप बदलने का चमत्कार, धारी मां की महिमा अपार, केदारनाथ आपदा से जुड़ा है रहस्य
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥
रैबार डेस्क : नवरात्रि (Navratri) के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है। देवी भागवत के अनुसार कूष्मांडा (Kushmanda) देवी ने अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा। जब चारों तरफ अंधकार था तब देवी कूष्मांडा ने ही अपने ब्रह्मा की शक्ति के रूप में अपने उदर से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इन्हें ही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति माना जाता है। सृष्टि की रचना के बाद उसमें प्रकाश भी इन्ही के कारण आया है। इसलिए ही ये सूर्यलोक में निवास करती हैं। चतुर्थ नवरात्रि पर आज हम आपको माता काली को समर्पित धारी देवी (Dhari Devi) के दर्शन करवा रहे हैं। मां धारी का धाम अपेन आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है।
श्रीनगर से बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर अलकनंदा के तट पर स्थित धारी देवी का मंदिर मां काली को समर्पित है। यह मंदिर केवल उत्तराखंड के लोगों के लिए नही बल्कि देश विदेश के भक्तों के लिए बड़ी आस्था का केंद्र है। काली माता का रूप होने के कारण यहां बंगाल से बड़ी संख्या में भक्तगण आते हैं। ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर का निर्माण 1807 में बताया जाता है। यह मंदिर अलकनंदा नदी पर बनी झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। पहल यह नदी के तट पर स्थित था। लेकिन 2013 में झील बनाने के लिए मंदिर को मूल जगह से स्तंभों के सहारे ऊपर उठाया गया है।
मान्यताएं
धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं सुबह कुमारी कन्या का रूप, दोपहर में महिला का रूप और शाम को बूढ़ी महिला का स्वरूप धारण करती हैं।
एक पौराणिक कथन के अनुसार कि एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनाई सुनी और पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। । इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।
लोगों का विश्वास है कि मां धारी उत्तराखंड के चारधामों की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है। इसीलिए चारधाम जाने वाले यात्री यहां दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।
हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी धारी की विशेष पूजा की जाती है। देवी काली के आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस पवित्र दर्शन करने आते रहे हैं ।मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है
केदारनाथ आपदा से संबंध
कुछ लोगों का मानना है कि जब साल 2013 में मंदिर को तोड़कर माता की मूर्ति को मूल स्थान से हटा दिया गया था, इसी वजह से उस साल उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। माना जाता है कि धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था और उसके कुछ ही घंटों बाद राज्य में आपदा आई थी। बाद में उसी जगह पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया गया