2024-04-29

मूल निवास स्वाभिमान रैली के लिए कुमाऊं के युवाओं ने भी भरी हुंकार, 24 दिसंबर को परेड ग्राउंड में जुटने का आह्वान

people from all over uttarakhand gearing up to mool niwas maharally

रैबार डेस्क: उत्तराखंड में एक बार फिर से मूल निवास का कटऑफ वर्ष 1950 करने और सख्त भू कानून की मांग को लेकर प्रदेश क कोने कोने से लोग लामबद्ध हो रहे हैं। उत्तराखंड के तमाम संगठनों ने 24 दिसंबर को देहरादून में मूल निवास स्वाभिमान रैली बुलाई है। गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के आह्वान के बाद इस आंदोलन को नया बल मिला है। तमाम सेलिब्रिटी ने इस मुहिम का समर्थन किया है। इस बीच कुमाऊं अंचल से भी देहरादून पहुंचने के लिए युवाओं ने तैयारी कर ली है। हल्द्वानी में आज सामाजिक संगठनों ने मूल निवास और भू कानून को लेकर बैठक करते हुए,कुमाऊं मंडल से भारी संख्या में लोगों को देहरादून पहुंचने की अपील की

सामाजिक संगठन के लोगों ने हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में मूल निवास और भू कानून 1950 को लेकर खुली चर्चा की। इस चर्चा में तय किया गया कि देहरादून में महारैली के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाया जाए। लोगों का कहना है कि राज्य केसंसाधनों औऱ नौकरियों पर पहले उत्तराखंड वासियों का हक है लेकिन ऐसे लचर कानून की वजह से उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं का हक मारा जा रहा है।1950 मूल स्थाई निवास और भू-कानून को लेकर काफी लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है. सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही है ।

बता दें कि उत्तराखंड में राज्य गठन के समय यहां रह रहे लोगों को स्थायी निवासी का दर्जा प्राप्त है। सरकार मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के बजाए स्थायी निवास प्रमाण पत्र जारी करती है। जबकि राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन और बाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार किसी भी राज्य में मूल निवासी तय करने का कटऑफ वर्ष 1950 है। राज्य पुनर्गठन बिल की धारा 24 औऱ 25 में भी इसका जिक्र है। लेकिन उत्तराखंड में हाईकोर्ट के फैसले के बाद कटऑफ वर्ष राज्य स्थापना की तिथि है। ऐसे में बाहरी प्रदेशों के तमाम लोगों को आसानी से स्थाई निवास का प्रमाण पत्र जारी हो रहा है। इससे स्थानीय लोगों को हक हकूकों पर मार पड़ रही है।

 बाहरी प्रदेशों का कोई भी व्यक्ति आसानी से उत्तराखंड का स्थायी निवासी बन जा रहा है. राज्य की तमाम योजनाओं और नौकरियों का लाभ ले रहा है, जबकि संविधान में साफ कहा गया है कि वर्ष 1950 में जो व्यक्त जिस राज्य में रह रहा हो, वो और उसकी पीढ़ियां उसी राज्य की मूल निवासी होंगी. उत्तराखंड में किसी दूसरे राज्य के मूल निवासी लोग भी आसानी से स्थायी निवासी बन रहे हैं. उन्हें तमाम योजनाओं का लाभ मिल रहा है.

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