2024-05-14

लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेयरेशन नहीं दिया तो होगी 6 महीने की जेल, जानिए उत्तराखंड यूसीसी की बड़ी बातें

रैबार डेस्क:  उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक को उत्तराखंड विधानसभा में पेश किया गया है। बिल पर चर्चा जारी है। यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समाननागरिक संहिता आम आदमी के निजी जीवन पद्धित जैसे कि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, भरण पोषण या गोद लेने जैसे फैसलों पर ही लागू होगा। इसीलिए इसे सिविल कोड कहा गया है। किसी भी तरह के अन्य अपराधों से निपटने के लिए सीआरपीसी, आईपीसी जैसे कानून मौजूद हैं। एक औऱ महत्वपूर्ण बात कि ये कानून केवल उत्तराखंड में लागू होगा। यानी दोनों पक्षों में से एक का उत्तराखंड का निवासी होना जरूरी है।

आइये जानते हैं कि इस बिल में क्या क्या प्रावधान किए गए हैं। सबसे ज्यादा चर्चा लिव इन रिलेशनशिप को लेकर हो रही है। यूसीसी लागू होन के बाद उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को पंजीकरण कराना होगा।

विधेयक के मुताबिक लिन इन रिलेशनशिप मे रहने वाले कपल को या लिव में रहने की इच्छा रखने वालों को सक्षम अधिकारी के समक्ष सेल्फ डिक्लेयरेशन देना होगा जिसमें उनकी पूरी डिटेल्स होगी। जरूरत पड़ने पर सक्षम अधिकारी पुलिस के माध्यम से कपल का वैरिफिकेशन और पंजीकरण करवा सकते हैं। यही नही लिव इन में रहे लोगों को माता पिता की परमिशन भी लेनी होगी। बिल में यह भी प्रस्‍ताव है कि लिव-इन रिलेशनशिप उन मामलों में पंजीकृत नहीं किए जाएंगे, जो नैतिकता के विरुद्ध हैं। यानी यदि एक साथी विवाहित है या किसी अन्य रिश्ते में है, यदि एक साथी नाबालिग है, और यदि एक साथी की सहमति जबरदस्ती, धोखाधड़ी द्वारा प्राप्त की गई थी, या पहचान छिपाई गई है तो उन्हें लिव इन कपल के रूप में पंजीकृत नही किया जा सकेगा।

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए दी गई गलत जानकारी कपल को मुसीबत में भी डाल सकती है। गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप का एख महीने के भीतर डिक्लेयरेशन न देने पर अधिकतम छह महीने की जेल, ₹ 25,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। सबसे खास बात ये कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता मिलेगी यानी, वे दंपति की वैध संतान होंगे।

अन्य बड़ी बातें

यूसीसी में ये सुनिश्चित किया गया है कि लड़कियों की शादी 18 साल से पहले और लड़कों की शादी 21 साल से पहले न हो

सबसे खास बात ये है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में किसी भी धर्म की पूजा पद्धति, या विवाह की रस्मों के साथ कोई छेड़छाड़ नही की गई है।

लेकिन यूसीसी ये भी कहता है किसी भी विधि से की गई शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी है। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नही मिलेगा। ग्राम स्तर पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी।

एक से ज्यादा शादी करने पर रोक लगाई जाएगी। पति या पत्नी में से किसी की मृत्य होने या तलाक की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद ही दूसरी शादी की जा सकती है।

तलाक लेने के लिए महिलाओं को भी पुरुषों के समान आधार दिए गए हैं। फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग अलग ग्राउंड हैं।

तलाक के बाद महिला से पुनर्विवाह की सूरत में महिला को किसी भी शर्त से नहीं बांधा जा सकेगा। यानी हलाल जैसी कुप्रथाओं का अंत होगा। अगर महिला को किसी शर्त के लिए विवश किया गया तो तीन साल कीसजा का प्रावधान है।

अभी तक ये देखा गया है कि पिता की संपत्ति में बेटे बहू का अधिकार होता है, लेकिन यदि बेटे की मृत्यु हो जाती है तो बेटे की अर्जित संपत्ति में माता पिता को अधिकार नहीं मिलता। यूसीसी में माता-पिता को मृतक की सम्पत्ति में एक अंश निर्धारित किया गया है।

अमूमन अचल संपत्ति के बंटवारे में बेटियों को बेटों के बराबर हक नहीं मिल पाता, लेकिन समान नागरिक संहिता में सभी धर्म संप्रदायों के लिए व्यवस्था है कि एक व्यक्ति की समस्त सन्तानों को समान अधिकार प्रदान किये जाएंगे।

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