ऐपण, राजमा, च्यूरा समेत उत्तराखंड के इन 7 उत्पादों को मिल सकती है GI टैगिंग, Local उत्पाद बनेंगे Global
पिथौरागढ़ जिला प्रशासन का प्रयास। स्थानीय हैंडमेड उत्पादों को GI Tag के लिए भेजा। राजमा, रिंगाल हैंडीक्राफ्ट्स, ऐपण, थुलमा, च्यूरा, तांबे बर्तन, ज्या का पंजीकरण। जीआई टैगिंग से बढ़ेगी वैल्यू।
रैबार डेस्क: उत्तराखंड अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। यहां के हस्तशिल्प अन्य उत्पाद हर किसी को अपनी ओऱ आकर्षित करते हैं। मगर सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही उत्तराखंड के 7 उत्पादों को जीआई टैगिंग (Geographical Indicator tagging) मिल सकती है (7 handmade products from Uttarakhand may get GI Tag) । पिथौरागढ़ जिला प्रशासन से पिथौरागढ़ और उत्तराखंड के 7 यूनिक हस्तशिलप उत्पादों और कलाकृतियों को जीआई टैगिंग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन लिए भेजा है। इन उत्पादों में शामिल हैं, -मुनस्यारी की मशहूर सफेद राजमा, रिंगाल से बने हैंडीक्राफ्ट्स, ऐपण की कलाकृतियां, थुलमा (जो एक प्रकार का कार्पेट होता है), च्यूरे से बने प्रोडक्ट्स, तांबे से बने पारंपरिक बर्तन और एल्पाइन जोन में परोसे जाने वाली स्वादिष्ट मसाला चाय – ज्या
एक बार इन प्रोडक्ट को जीआई टैगिंग मिल जाए तो समझिए उत्तराखंड के हस्तशिल्प उत्पादों, अन्य उत्पादों और कलाकृतियों को ग्लोबल मार्केट मिल सकती है। यानी ये उत्पाद देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बना सकते हैं। जिला प्रशासन लंबे समय से इन प्रोडक्ट को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रयासरत है। नाबार्ड के साथ मिलकर इन प्रोडक्ट को नई पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले चरण में जीआई टैग देने वाले चेन्नई के दफ्तर ने सभी पदार्तों की स्क्रूटनी की औऱ इ्हें उफयुक्त पाया। इसके बाद नवंबर 2019 में इ प्रोडक्ट के बारे में किए गए दावों पर सुनवाई हुई। जिसके बाद 7 में 6 प्रोडक्ट को जीआई की पत्रिका में छापा गया। सिर्फ मसालेदार ज्या चाय को जीआई जर्नल में जगह नहीं मिल सकी। अब इन प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलने की उम्मीद जगी है। इन 7 प्रोडक्ट को विभिन्न स्वयं सहायता समूहों द्वारा परिष्कृत किया जा रहा है।
क्या है जीआई टैग
लेकिन सबसे पहले जान लीजिए ये जीआई टैगिंग होती क्या है..GI Tag यानी Geographical Indicator (भौगोलिक संकेतक) को कहा जाता है। जीआई टैग एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। ऐसा उत्पाद जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठा मुख्य रूप से प्रकृति और क्षेत्र विशेष के कारकों पर निर्भर करती है।जीआई टैग उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता को दर्शाता है। दिसंबर, 1999 में संसद ने जीआई टैगिंग के लिए एक्ट बनाया था, जिसके बाद 2003 से भारत में पाए जाने वाले यूनीक प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ। हमारे शिल्पियों, बुनकरों, किसानों की समृद्ध विरासत, धरोहर और परंपरा को संजोना औऱ उसे प्रोत्साहन देना जीआई टैगिंग का मुख्य उद्देश्य है।
किन किन चीजों की जीआई टैगिंग
किसी भी क्षेत्र विशेष में मौजूद खेती से जुड़े प्रॉडक्ट्स, हैंडीक्राफ्ट्स, मैनिफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स, और खाद्य सामग्री के उत्पादों को जीआई टैगिंग दी जा सकती है।
जीआई टैगिंग के लिए चेन्नई स्थित Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) के ऑफिस में आवेदन किया जाता है। यह संस्था प्रोडक्ट के बारे में किए गए दावों और उसके महत्व की छानबीन करती है, उसके बाद ही प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलता है।
जीआई टैग मिलने का फायदा
जीआई टैग उसी प्रॉडक्ट को मिलता है, जो एक खास एरिया में बनाया जाता है या पाया जाता है।जीआई टैग मिलने से पता चल जाता है कि ये चीज उस खास एरिया में मिलती है। उदाहरण के लिए मुन्स्यारी की राजमा या ऐपण को अगर जीआई टैग मिलतै है तो इसकी एक ब्रांड वैल्यू बनेगी। इसे राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय बाजार मिलेगा। इससे जुडे़ लोगों की आमदनी बढ़ेगी। इससे क्षेत्र की विशेष पहचान बनेगी। जिस क्षेत्र के प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलेगा वहां पर्यटन बढ़ेगा।