प्रथम नवरात्रि: माता कुंजापुरी के धाम में भक्ति, और आध्यात्म के साथ हिमालय के अद्भुत दर्शन
रैबार डेस्क: शारदीय नवरात्रि (Shardeeya Navratri) का आज पहला दिन है। प्रथम नवरात्रि माता शैलपुत्री (Shailputri) को समर्पित है। माता शैलपुत्री को हिमालय पर्वत की बेटी कहा जाता है। एक बार प्रजापति दक्ष (सती के पिता) ने यज्ञ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया। दक्ष ने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में सती ने यज्ञ में जाने की बात कही तो भगवान शिव उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण जाना ठीक नहीं लेकिन जब वे नहीं मानीं तो शिव ने उन्हें इजाजत दे दी। जब सती पिता के यहां पहुंची तो उन्हें अपमानित होना पड़ा। महादेव के अपमान को सती सहन नही कर सकी औऱ यज्ञ में भष्म हो गईं। यह समाचार सुन भगवान शिव ने दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करा दिया। अगले जन्म नें सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। आज हम आपको मातारानी क समर्पित ऐसे ही एक दिव्यधाम माता कुंजापुरी (Kunjapuri) के दर्शन करवा रहे हैं।
समुद्रतल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माता कुंजापुरी का धाम टिहरी जिले के नरेंद्रनगर ब्लॉक में स्थित है। कुंजापुरी मंदिर एक पौराणिक एवं पवित्र सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है। यह स्थल केवल देवी देवताओं से संबंधित कहानी के कारण ही नहीं बल्कि यहाँ से गढ़वाल की हिमालयी चोटियों के विशाल दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध है यहाँ से हिमालय पर्वतमाला के सुंदर दृश्य हिमालय के स्वर्गारोहिणी, गंगोत्री, बंदरपूँछ, चौखंबा और भागीरथी घाटी के ऋषिकेश, हरिद्वार और दूनघाटी के दृश्य दिखाई देते हैं।
सिद्धपीठ कुंजापुरी मंदिर में वर्ष 1974 से मेला आरंभ हुआ था। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। कुंजापुरी मंदिर में सुबह शाम विधिवत पूजा की जाती है। सुबह को देवी को स्नान करवाने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र पर्व के अवसर पर मंदिर में बाहर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यहां नवरात्र पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
मन्दिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं हैं परन्तु अन्दर एक शिलारुप पिण्डी स्थापित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर देवी के कुंज गिरे थे। गर्भ गृह में ही एक शिवलिंग तथा गणेश जी की एक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। मन्दिर में निरंतर अखन्ड ज्योति जलती रहती है। मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अलावा एक और भव्य मन्दिर स्थापित है जिसमें भगवान शिव, भैरों, महाकाली तथा नरसिंह भगवान की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।
मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे जिस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा। स्कंध पुराण के केदारखंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था। इसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उसमें शंकर व अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया गया। जब सती को यज्ञ का पता चला तो वह उसमें शामिल होने कनखल चली गई। यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने यज्ञ कुंड में आहुति दे दी। शिव को जब यह पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे और यहां से सती का शरीर लेकर कैलाश की ओर चल पड़े। सती का शव रास्ते में टूट कर जगह-जगह गिरता रहा कुंजापुरी में सती के कुंज गिरे जिस कारण इसका नाम कुंजापुरी पड़ा।