2024-05-02

भूस्खलन से अब नहीं मचेगी तबाही, पहले ही मिल जाएगी चेतावनी, रुद्रप्रयाग समेत देश के 4 जिलों में लगा ये सिस्टम

LANDSLIDE EARLY WARNING SYSTEM

रैबार डेस्क: बरसात के मौसम में उत्तराखंड समेत पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन से भारी तबाही मचती है। कई दिन तक रास्ते बंद रहते हैं। इससे जानमाल केसाथ समय का भी बडा नुकसान होता है। लेकिन सबकुछ ठीक रहा तो अब ऐसी आपदा की दो दिन पहले ही चेतावनी मिल जाएगी, जिससे बचाव के त्वरित उपाय किए जा सकेंगे।जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) नेशनल लैंडस्लाइड डिजास्टर मैनेजमेंट के तहत देश के सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित 11 राज्यों में लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की दिशा में काम कर रहा है। यह काम वर्ष 2027 तक पूरा हो जाएगा।

रुद्रप्रयाग में लगा पहला लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम

प्रायोगिक तौर पर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले सहित देश के अन्य राज्यों के चार जिलों में यह सिस्टम लगाया गया है, जिससे प्राप्त आंकड़ों का लगातार विश्लेषण किया जा रहा है। इसके अलावा सहित तमिलनाडु के नीलगिरी जिले, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और कालिमपोंग को शामिल किया गया है। भूस्खलन की संवेदनशीलता के लिहाज से देश में अरुणाचल और हिमाचल प्रदेश के बाद उत्तराखंड तीसरे स्थान आता है। हालांकि, यह अभी प्रायोगिक तौर पर है। इसमें नक्शों सहित डाटा प्राप्त होता है।

जीएसआई ने नेशनल लैंडस्लाइड सेंसिबिलिटी मैपिंग प्रोग्राम के तहत यहां करीब 15 हजार भूस्खलन क्षेत्र चिह्नित किए हैं। भूस्खलन हर साल सैकड़ों लोगों की जानें लेने के साथ विकास योजनाओं पर दुष्प्रभाव डालते हैं। चारधाम यात्रा सहित हमारी तमाम परियोजनाओं पर इसका असर पड़ता है। हर साल भूस्खलन क्षेत्रों के उपचार में करोड़ों रुपये भी खर्च हो जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय एजेंसी जीएसआई ने अब इसके खतरों से निपटने के लिए रीजनल लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने की कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया है। जीएसआई के उप महानिदेशक डॉ. हरीश बहुगुणा ने बताया कि रीजनल लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम को पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र को भी शामिल किया गया है।

संस्थान ने भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में अपने उपकरण लगाए हैं। इन उपकरणों की सहायता से भूस्खलन की जानकारी दो से तीन दिन पहले मिल जाती है। अभी तहसील स्तर पर डाटा इकट्ठा किया जाता है, जिसे जिला प्रशासन को भेज दिया जाता है। फिलहाल यह डाटा जन समुदाय के लिए उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा 11 राज्यों उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाड़ू, हिमाचल प्रदेश, केरल, सिक्किम, असम, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और कर्नाटक में यह सिस्टम लगाया जाना है।

2024-25 के बीच होगा रिव्यू

जीएसआई के उप महानिदेशक डॉ. हरीश बहुगुणा ने बताया कि हमारे हिमालयी राज्य भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हैं। हम रीजनल लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग सिस्टम का वर्ष 2024-25 के मध्य रिव्यू करेंगे। देखेंगे कैसे परिणाम मिल रहे हैं। इसके बाद परिणाम पब्लिक डोमेन में डालने शुरू करेंगे। किसी भी क्षेत्र विशेष में भूस्खलन की यदि पहले जानकारी मिल जाती है, तो यह बहुत सी जानें बचाने के साथ विकास की तमाम योजनाओं को प्रभावी बनाने में मददगार होगा।

क्या है सिस्टम की खासियत?

इस सिस्टम की खासियत है कि इसमें नशे के साथ-साथ घटित हो रही घटना का डाटा भी प्राप्त होता है संस्थान ने भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में अपने उपकरण लगाए हुए हैं। इन उपकरणों की सहायता से भूस्खलन की जानकारी दो से तीन दिन पूर्व ही मिल जाती है। यह डाटा तहसील स्तर पर इकट्ठा कर जिला स्तर को भेज दिया जाता है फिलहाल सामान्य जनता के डाटा नहीं पहुंचा जा रहा है।

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