इसलिए जरूरी है सख्त भू कानून: खूबसूरत बेनीताल पर माफियाओं की नजर, जगह जगह निजी संपत्ति के बोर्ड लगे
रैबार डेस्क: उत्तराखंड में सख्त भू कानून क्यों जरूरी है, इसकी एक बानगी आज आपको दिखाएंगे। उत्तराखंड में जगह जगह भू माफियाओं का कब्जा हो रहा है। यहां तक कि खूबसूरत बुग्यालों को भी नहीं बख्शा गया है। चमोली जिले के ख़ूबसूरत बेनीताल बुग्याल (Benital land capture by bhoo mafia) पर भी माफियाओं ने कब्जा जमा लिया है। यहां की सड़क को बंद करके यहां निजी संपत्ति होने का बोर्ड लगा दिया है। ऐसे में सवाल प्रशासन पर भी उठ रहा कि आखिर सरकार की या ग्राम पंचायत की जमीन पर किसने निजी संपत्ति से अधिकार जमाने की अनुमति दी है?
चमोली जिले के गैरसैंण के नजदीक खूबसूरत बेनीताल बुग्याल स्थित है। यह बुग्याल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है। लेकिन प्रशासन आंख मूंदे रहा तो जल्द ही इस बुग्याल को माफिया हड़प जाएंगे, और देखते ही देखते यहां कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए जाएंगे।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी और आरटीआई लोक सेवा संस्था के मनोज ध्यानी उर्फ मुकुंद कृष्ण दास हाल ही बेनीताल बुग्याल रिवाइवल पर जानकारी जुटाने वहां पहुंचे। लेकिन वहां उन्होंने जो तस्वीरें देखी, उससे सब भौंचक्के रह जाएंगे। भू माफियाओं की बुरी नजर इस बुग्याल पर पड़ चुकी है। सबसे पहले इस बुग्याल तक पहुंचने की सड़क को खोदकर सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। ऐसा लग रहा है यह ऐतिहासिक बुग्याल निजी हाथों में सौंप दिया गया है। यहां बड़े बड़े बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है, यह निजी संपत्ति है। इन साइनबोर्ड पर राजीव सरीन का नाम अंकित है। यह सारा वाकया मुकुंद कृष्ण दास ने अपने फेसबुक अकाउंट पर बयां किया है।
बेनीताल को बचाने के लिए बेनीताल संघर्ष समिति गठित की गई है। लेकिन यह समिति सबकुछ देखकर भी मौन है। स्थानीय लोगों के मुताबिक बेनीताल पर हो रहे निजी कब्जे का संज्ञान क्षेत्रीय नेताओं को भी है।लेकिन इस पर सभी मौन हैं। इस सरकारी जमीन पर पर्यटन विभाग बेहतर प्लानिंग करके इसे टूरिज्म का बेस्ट डेस्टिनेशन बना सकता था। यह बुग्याल ग्राम पंचायत या वन पंचायत के अधीन स्थानीय लोगों की आजीविका का साधन बन सकता था। लेकिन यहां निजी कब्जे से इस खूबसूरत जगह को बदरंग होने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
हालांकि ये भी बताया जा रहा है कि, आजादी से पहले यहां अंग्रेजों का टी एस्टेट था। उन्होंने भूस्वामी को जमीन सौंपी थी। 1978 में उत्तप्रदेश सरकार ने इस वन भूमि को अधिग्रहीत कर लिया था लेकिन, इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिसके बाद भू स्वामी के हक में फैसला आया। लेकिन सवाल अब भी वही है कि वन भूमि जिसको सरकार अधिग्रहित कर चुकी थी, वो किसी की निजी संपत्ति कैसे हो सकती है?
बेनीताल का इतिहास
बेनीताल एक खूबसूरत बुग्याल और ताल होने के साथ साथ ऐतिहासिक विरासत भी है। उत्तराखंड के हृदयस्थल गैरसैंण में होने के कारण इसका बड़ा महत्व है। उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने के लिए इसी बेनीताल में बाबा मोहन उत्तराखंडी आमरण अनशन पर बैठे थे। वहाँ पर उनकी स्मृति में जनस्मारक भी बना हुआ है।