2024-03-29

भगवान बदरीनाथ के लिए सुहागिनों ने पिरोया तिल का तेल, नरेंद्रनगर से बदरीनाथ के लिए रवाना हुई गाड़ू घड़ा कलश यात्रा

women extracts oil for badrinath dham

रैबार डेस्क: भगवान बदरीनाथ के कपाट खोलने की तैयारियां तेज हो गई हैं। बुधवार को नरेंद्रनगर राजमहल में पारंपरिक गाड़ू घड़ा कलश परंपरा की विधि विधान से शुरुआत की गई। इस परंपरा में राजमहल में सुहागिनों ने पूजा अर्चना के बाद ताजे तिलों का तेल पिरोया। इस तेल का प्रयोग बदरीनाथ धाम में अखंड जोत जलाने और भगवान के लेपन मे किया जाएगा। शाम को राजमहल से गाड़ू घड़ा कलश यात्रा को बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया। Women extracts 25 kg collins oil for badrinath dham as gadu ghada yatra begins

नरेंद्र नगर राजमहल में रानी माला राजलक्ष्मी शाह के साथ स्थानीय सुहागिन महिलाओं ने पूजा अर्चना के बाद तिल को पारंपरिक सिलबट्टे पर पीसकर तेल निकाल। इसके बाद इसे विशालकाय गाड़ू घड़े में भरकर बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया। यह कलश यात्रा ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, डिम्मर विभिन्न पड़ावों से होते हुए 26 अप्रैल शाम को बदरीनाथ धाम पहुंच जायेगी। कपाट खुलने के अवसर पर गाडू घड़ा के तिलों के तेल से भगवान बदरीविशाल का छह माह तक यात्रा काल में अभिषेक किया जायेगा। इस तेल से अखंड जोत भी जलती रहेगी। बता दें कि श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल को प्रातः 7 बजकर 10 मिनट पर विधि-विधान से खुल जायेंगे।

क्या है गाडू घडा कलश

महारानी तथा राजपरिवार व रियासत की लगभग सौ सुहागन महिलाओं के द्वारा सिल बट्टे पर पिस कर तिल का तेल निकाला जाता है। जिसे 25.5 किलो के घड़े में भरकर मंदिर समिति को सौंपा जाता है। महल में निकाले गए इस तिल के तेल से बद्रीनाथ धाम का दीप प्रज्वलित रहता है। इसी तिल से भगवान के विग्रह रूप में लेप भी किया जाता है। यह यात्रा राजमहल से बद्रीनाथ तक 7 दिन में पूरी होती है इसे गाडू घडा़ कलश यात्रा कहते हैं।

टिहरी राजपरिवार का बदरीनाथ धाम के साथ गहरा संबंध रहा है। टिहरी रियासत के समय से बदरीनाथ धाम में पूजा अर्चना और सारे प्रबंध कार्य राजपरिवार स्वयं देखता था। जनता राजा को बदरीनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में देखती थी। इसीलिए उन्हें बोलांदा बदरी (बोलते हुए बदरी) कहा जाता था।  लेकिन 1815 में गोऱखाओं से युद्ध के बाद टिहरी रियासत ने आधा राजपाट अंग्रेजों को दे दिया, जिसे ब्रिटिश गढ़वाल कहा जाने लगा। इस तरह राज परिवार का बदरीनाथ धाम में सीधा हस्तक्षेप कम होता गया। लेकिन बाद में राजपरिवार को बदरीनाथ धाम की कुछ परंपराओं को निभाने का अधिकार वापस मिल गया। गाड़ू घड़ा परंपरा उन्हीं परंपराओं में से एक है। इसेक अलावा बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि की घोषणा भी राजपरिवार के राजमहल में की जाती है। वर्तमान में टिहरी राजपरिवार का नरेंद्रनगर में राजमहल है।

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