बालिका लिंगानुपात में जबरदस्त सुधार, पहाड़ों में बढ़ा, शहरों में घटा, शिशु मृत्यु दर भी बढ़ी
रैबार डेस्क: भारत में बालिका लिंगानुपात सुधारने के तमाम प्रयास अब रंग लाते दिख रहे हैं। भारत में पहली बार बालकों के मुकाबले बालिकाओं का लिंगानुपात बढ़ा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS) में ये बात सामने आई है। उत्तराखंड (Girl child sex ratio increased in India Uttarakhand) ने भी बालिका लिंगानमुपात सुधार में बेहतरीन काम किया है। हालांकि यहां ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्र बालिका लिंगानुपात में पीछे रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS-5) के हालिया सर्वेक्षण में प्रत्येक 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाओं को दिखाया गया है। ये पहली बार हुआ है जब महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक हुई है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के अधिक अनुपात का ट्रेंड आमतौर पर विकसित देशों में देखा जाता है। इसलिए यह भारत के लिए गौरव की बात है। भारत सरकार द्वारा बेटी बचाओ जैसे कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनका सकारात्मक असर अब दिखने लगा है।
उत्तराखंड की बात करें तो NFH सर्वे के मुताबिक प्रदेश में बालिका लिंगानुपात में 96 का सुधार हुआ है। साल 2015-16 के फैमिली हेल्थ सर्वे में उत्तराखंड में प्रति 1000 बालकों पर 888 बालिकाएं थी जो 2021 के सर्वे में बढ़कर 984 हो गई हैं। यानि प्रति एक हजार बालकों पर 984 बालिकाओं का जन्म हो रहा है।
हालांकि उत्तराखंड के शहरों में लिंगानुपात चिंताजनक है। सर्वे की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य के शहरी इलाकों में कुल आबादी में प्रति एक हजार लड़कों पर केवल 943 लड़कियां हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या 1052 है। विशेषज्ञों की मानें तो शहरों में कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराधों के जारी रहने के कारण शहरों में ये ट्रेंड आया है।
संस्थागत प्रसव में सुधार
रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने में 21 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान में 83.29 प्रतिशत प्रसव सरकारी अस्पतालों में हो रहे हैं। इसके अलावा मातृ-शिशु के टीकाकरण में उछाल आया है। प्रदेश में टीकाकरण में 40.28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहले टीकाकरण का स्तर 57.60 प्रतिशत था। जो बढ़ कर 80.80 प्रतिशत पहुंच गया है।
बाल लिंगानुपात में सुधार एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन है। जो मां के गर्भ में भ्रूण का लिंग परीक्षण की कुप्रवृत्ति में कमी को दर्शाता है। बेटियों के विकास के लिए यह एक सराहनीय पहल है। उत्तराखंड में गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए संस्थागत प्रसव में सुधार हुआ है।
शिशु मृत्यु दर बढ़ी
उत्तराखंड में पांच साल में नवजात मृत्यु दर बढ़ी है। प्रदेश में प्रति एक हजार जन्म पर 32 नवजात की जन्म के एक माह के भीतर मृत्यु हो रही है। इसके अलावा एनीमिया से ग्रसित 15 से 19 आयु के युवकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे(एनएफएचएस) 2019-20 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। पांच साल पहले एनएफएचएस सर्वे रिपोर्ट-4 में उत्तराखंड में जन्म के 29 दिन के भीतर नवजात की मृत्यु दर प्रति एक हजार जन्म पर 27.9 थी। जो 2019-20 के सर्वे में बढ़ कर 32 पहुंच गई है।