2024-04-26

हौसले की मिसाल हैं एसिड अटैक पीड़ित कविता बिष्ट ,कई लोगों के जीवन में भर रही रोशनी

acid attack victim kavita bisht

रैबार डेस्क: अल्मोड़ा के रानीखेत की रहने वाली एक लड़की शहरों में अपने कुछ सपने लेकर जाती है। नौकरी भी लग जाती है, लेकिन समाज में कुछ ऐसे बर्बर अपराधी भी होते हैं, जो किसी के सपनों को बेखौफ होकर रौंदते चले जाते हैं। लेकिन कहते हैं कि अगर मन में जज्बा हो तो तमाम मुश्किलों के बाद भी मंजिल पाने से कोई नही रोक सकता। रानीखेत की कविता बिष्ट की भी ऐसी ही प्रेरक कहानी है। जो एसिड अटैक झेलने के (inspiring story of acid attack victim Kavita bisht) बाद भी मुश्किलों से नहीं हारी, और अपनी आंखें खोने के बाद आज कई लोगों की जिंदगी में रोशनी दे रही हैं।

कविता बिष्ट संघर्ष और हौसले की प्रतिमूर्ति हैं। मूल रूप से रानीखेत की रहने वाली कविता बिष्ट नोएडा में जॉब करने गई थी। कुछ मनचले कविता के पीछे पड़ गए। स्वाभिमानी कविता ने उन्हें भाव नही दिया तो उनेक अंदर का शैतान जाग गया। 2 फरवरी 2008 का वो मनहूस दिन, जब कविता जब जॉब के लिए जा रही थी, कविता बस स्टैंड पर खड़ी थी, तभी दो मनचलों ने कविता पर एसिड फेंकने का घिनौना अपराध किया। कविता भयंकर पीड़ा से जूझती रही। कानूनी पचड़ों और फौरन इलाज न मिलने के कारण कविता की हालत खराब होती जा रही थी। 8 दिन बाद कविता को होश आया तो दिल्ली के अस्पताल में महीनों तक इलाज चला। आंखों की रोशनी चली गई। यह हादसा मानसिक आघात देने वाला था। एसिड अटैक के बाद कविता करीब 2 साल तक डिप्रेशन में रही।

लेकिन कहते हैं कि जिनके हौसले बुलंद होते हैं, उनके रास्ते खुद बन जाते हैं। घर लौटने के बाद कविता ने एक साल देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान में ट्रेनिंग ली। इन संघर्षों ने कविता को नई ताकत दी। अपने दोस्तों से डोनेशन लेकर समाजसेवा में हाथ बढ़ाया। 2020 में रामनगर में कविता ने इंदु समिति की मदद से ‘ Kavita’s Women Support Home’ स्थापित किया। जहां वे घर के आस-पास रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर रही हैं। साथ ही एसिड अटैक, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सहायता करती हैं। कविता अपने संस्थान के जरिए कविता 100 से ज्यादा दिव्यांग बच्चों के लिए मदद जुटा रही हैं। अपनी आंखों की रोशनी खो चुकी कविता दूसरों की जिंदगी में प्रकाश ला रही हैं।

कविता कहती हैं कि संस्थान में आने वाले दिव्यांग, शोषित, पीड़ित लोग ही अब उनकी आंखें हैं, जिनके स्वावलंबी होने के साथ ही वे दुनिया को देख पा रही हैं। कविता बताती हैं कि उनकी मां ने हमेशा उनका साथ दिया और सुईं में धागा डालने जैसी छोटी चीज़ें उन्हें सिखाईं। कविता कभी हारने लगतीं तो उनकी मां उन्हें प्रेरित करती।

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