आठवां नवरात्रि: गर्जिया माता मंदिर जहां सुनाई देती है शेर की गर्जना, मन की मुराद होती है पूरी
श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिःमहागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।
रैबार डेस्क : आठवें नवरात्रि (Navratri) पर मां दुर्गा के महागौरी (Mahagauri) स्वरूप की पूजा की जाती है। इनका वर्ण पूर्णत: गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। भगवती महागौरी बैल के पीठ पर विराजमान हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे के दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरु और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा है। इनकी मुद्रा अत्यन्त शान्त है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और अत्यन्त फलदायिनी है। इनकी उपासना से पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। आज आपको रामनगर स्थित जगत प्रसिद्ध गर्जिया माता (Garjia Mata Mandir) के दर्शन करवा रहे हैं। गर्जिया मंदिर अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है।
गर्जिया माता का धाम रामनगर से 15 किलोमीटर दूर सुन्दरखाल नामक गाँव में कोसी नदी के तट पर बसा है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती के इस मंदिर को गिरिजा या गर्जिया मंदिर कहा जाता है।
मान्यता
गर्जिया देवी को पहले उपटा देवी के नाम से भी जाना जाता था। वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आया था। भैरव देव ने टीले को बहते हुए आता देखा| मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देखकर भैरव देव ने कहा – “थि रौ, बैणा थि रौ” अर्थात् ‘ठहरो, बहन ठहरो’, यहाँ पर मेरे साथ निवास करो। तभी से गर्जिया में उपटा देवी यानी गर्जिया देवी निवास कर रही हैं। वर्ष 1940 से पूर्व यह क्षेत्र भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था और उपेक्षित अवस्था में था
कहा जाता है कि टीले के पास माँ दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना भी किया करता था| कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुए भी लोगों द्वारा देखा गया है। तब से यह क्षेत्र माँ के शक्तिस्थल के रूप में दूर-दूर तक विख्यात हो गया इसके बाद लोगों के सहयोग से यहां देवी माँ का मंदिर बन गया।
जंगली जानवरों की भयंकर गर्जना के बावजूद भक्तजन इस स्थान पर माँ के दर्शनों के लिए तांता लगाये रहते थे। 1956 में कोसी नदी में बाढ़ के कारण मंदिर की सभी मूर्तियां बह गयी थीं सिर्फ गर्जिया माँ का श्री विग्रह (मूर्ती) ही शेष रह गयी थी । तब पण्डित पूर्णचन्द्र पाण्डे ने फिर से इसकी स्थापना कर मंदिर को भव्यता प्रदान की| इस मन्दिर का व्यवस्थित तरीके से निर्माण 1970 में किया गया।
वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की भव्य मूर्ति स्थापित है| इसके साथ ही यहां माता सरस्वती, गणेश तथा बटुक भैरव की भी प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र हैं| मंदिर परिसर में एक लक्ष्मी नारायण का भी मंदिर स्थापित है| इस मंदिर में दर्शन से पहले श्रद्धालु कोसी नदी में स्नान करते हैं| नदी से मंदिर तक जाने के लिये 90 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं| मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां घण्टे या छत्र आदि चढ़ाते हैं| नव-विवाहिताएं यहां आकर अटल सुहाग की कामना करती हैं| नि:संतान दंपति संतान प्राप्ति के लिये माता के चरणों में मत्था टेकते हैं. देवी मां की पूजा के उपरांत बाबा भैरव को चावल व उड़द की दाल चढ़ाकर पूजा की जाती है
गिरिजा देवी के दर्शन मात्र से युवक-युवतियों के विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त हो जाती हैं, ऐसी मान्यता है। आज भी युवक-युवतियां मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए गिरिजा देवी आकर प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना के लिए चुनरी बांधकर जाते हैं। जब मनोकामना पूरी होजाती है तो पति-पत्नी जोड़े में आकर पूजन करते हैं।