2024-03-29

नवां नवरात्रि: यहां माता पार्वती के नेत्रों के दर्शन मात्र से होता है समस्त दुखों का नाश, जानें नैनादेवी मंदिर की महिमा

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम। कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धिदात्री यशस्वनीम॥

रैबार डेस्क : नवरात्रि (Navratri) पर महानवमी के दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री (Siddhidatri) की पूजा विधि विधान से की जाती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति को कार्य सिद्धि प्राप्ति होती है, साथ ही शोक, रोग एवं भय से भी मुक्ति मिलती है। देव, गंदर्भ, असुर, ऋषि आदि भी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मां सिद्धिदात्री की आराधना करते हैं। देवों के देव महादेव भी इनकी पूजा करते हैं। नवम नवरात्र पर आज आपको नैनीताल जिले में स्थित मां नैनी देवी (Naina Devi) के दर्शन करवा ररहे हैं। जिनके नेत्रों मात्र के दर्शन से ही समस्त दुखों का नाश होता है। सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।


विश्वप्रसिद्ध नैनी झील के किनारे बसा नैना देवी मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं। नैना देवी मंदिर के दर्शन के लिए दूर- दराज से लोग आते हैं। नैना देवी के इस मंदिर की मान्यता है कि यदि कोई भक्त आंखों की समस्या से परेशान हैं तो अगर वह नैना मां के दर्शन कर ले तो जल्द ही ठीक हो जाएगा।


ऐतिहासिक रूप से कुषाण काल में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। नैना देवी मंदिर की मूर्ति 1842 में एक भक्त मोती राम शाह द्वारा स्थापित की गई बताई जाती है। 1880 में नैनीताल में भयानक भूस्खलन आया था। इस आपदा में नैना देवी मां का मंदिर नष्ट हो गया था। इस हादसे के बाद मंदिर को फिर से बनवाया गया है। इस मंदिर के अंदर नैना देवी मां की दो नेत्र बने हुए हैं। इन नेत्र के दर्शन मात्र से मां का आशीर्वाद मिलता हैं।


मान्यताएं
प्रचलित मान्यता के अनुसार मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप धारण कर लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा।
स्थानीय लोग नैना देवी को मां नंदा देवी भी मानते हैं। उत्तराखंड में माता पार्वती को नंदा देवी के रूप में भी पूजा जाता है। हर साल नंदा अष्टमी में नैना देवी मंदिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।


नैना देवी मंदिर ठीक सामने स्थित नैनी झील का भी पौराणिक महत्व है। स्‍कंद पुराण में इसे ऋषि सरोवर भी कहा गया है। नैनी झील कैसे बनी इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, लेकिन यहां के लोगों की मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब अत्री, पुलस्त्य और पुलह ऋषि को नैनीताल में कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने एक गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमें भरा। इस झील में बारे में कहा जाता है यहाँ डुबकी लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है जितना मानसरोवर झील में नहाने से मिलता है।


मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार पर पीपल का एक विशाल वृक्ष है। यहां माता पार्वती को नंदा देवी कहा जाता है।

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