पहाड़ों पर लोकपर्व इगास की धूम, सीएम धामी ने गौ पूजा कर मनाया इगास पर्व, जानिए क्या है माधो सिंह से इगास का कनेक्शन
रैबार डेस्क: उत्तराखंड में लोकपर्व इगास की धूम है। गढ़वाल में इगास और कुमाऊं में बूढ़ी दीपावली के नाम से ये पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है। आज इगास पर्व के मौके पर राजकीय अवकाश घोषित है, इससे गांवों में भी रौनक देखी जा रही है। (igas folk festival being celebrated across the state)
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इगास के अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। मुख्यमंत्री आवास में सीएम धामी ने गौ-पूजन कर प्रदेशवासियों की सुख- समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। मुख्यमंत्री ने देवउठनी एकादशी के इस पावन अवसर पर तुलसी पूजन भी किया। मुख्यमंत्री ने सभी को इगास की बधाई देते हुए इस लोकपर्व को उत्साह के साथ मनाने का आह्वान किया है।
उधर शहरों से लेकर सुदूर पहाड़ों पर इगास की तैयारियां जोरों पर हैं। सुबह से लोग पशुओं का पूजन कर उन्हें भोजन करा रहे हैं। घरों को सजा रहे हैं। रात्रि के समय भैलो खेलकर औऱ दीये जलाकर दीपावली की तरह इगास पर्व मनाया जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 17वीं सदी में गढ़वाल नरेश महीपतशाह के सेनापति वीर भड़ माधो सिंह भंडारी ने हूणों को तिब्बत तक खदेड़ दिया था। हूण बार बार आक्रमण करके गढ़वाल राज्य की सीमाओं पर अतिक्रमण करते थे, इसके बाद राजा महीपतशाह ने माधो सिंह को आदेश दिया कि हूणों को खदेड़ आओ। माधो सिंह 1635 में विशाल सेना लेकर तिब्बत के द्वापा द्वीप तक गए औऱ हूणों को बुरी तरह परास्त किया। लेकिन इस बीच माधो सिंह की कोई खबर नहीं मिली तो घर में मातम सा पसर गया, लोगों को लगा कि माधो सिंह शहीद हो गए। इसी कारण गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनाई गई। लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद अचानक जैसे ही माधो सिंह अपनी सेना सहित तिब्बत विजय करके वापस लौटे तो लोगों के जश्न का ठिकाना न रहा। लोगों ने घरों में दीये जलाए और मशाल या भैलो जलाकर खुशी जाहिर की। तब से माधो सिंह की तिब्बत विजय के उपलक्ष में दीवाली के 11वें दिन इगास मनाने का प्रचलन शुरू हुआ। सोशल मीडिया के प्रचार प्रसार से अब युवा पीढ़ी भी इगास की तरफ आकर्शित होने लगी है।
भैलो
इगास के दिन भैलो खेला जाता है जो रोशनी का प्रतीक है. भैलो एक प्रकार का रोशनी करने का तरीका है जिसमे रस्सी के एक सिरे पर मशाल बनाकर तथा दूसरे सिरे से हाथ से पकड़कर सिर के उप्पर घुमाते है, जिससे रोशनी का एक प्रतिमान बनता है जो देखने में काफी सुंदर लगता है। यह पर्व मवेशियों के लिए भी खास होता है इस दिन मवेशियो को टीका लगाकर जौ का दाला खिलाया जाता है.