द्वितीय नवरात्रि: यहां देवराज इंद्र ने तप करके पाया खोया हुआ राज्य, माता सुरकंडा के कीजिए दर्शन
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
रैबार डेस्क : शारदीय नवरात्रि (Navratri) का आज दूसरा दिन है। द्वितीय नवरात्रि माता ब्रह्मचारिणी (Brahmcharini) को समर्पित है। ब्रह्मचारिणी को तप की देवी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया. वह सालों तक भूखी-प्यासी रहकर शिव को प्राप्त करने की इच्छा पर अडिग रहीं. इसीलिए इन्हें तपश्चारिणी के नाम से भी जाना जाता है।
आज हम आपको मां जगदंबा को समर्पित पुण्यधाम मां सुरकंडा (Surkanda) के दर्शन करवा रहे हैं।
माता सुरकंडा भवानी के मंदिर में आकर अद्भुत शांति औऱ भक्ति का अहसास होता है। माना जाता है कि इस मंदिर में एक बार जाने से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी का मंदिर टिहरी के जौनुपर पट्टी में सुरकुट पर्वत पर स्थित है।
मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव जब सती माता के विक्षत शव को लेकर हिमालय की ओऱ जा रहे थे, तो इउस स्थान पर माता का सिर गिर गया। तभी से ये स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
अन्य मान्यताओं के अनुसार सुरकंडा मंदिर को देवराज इंद्र से जोड़कर भी देखा जाता है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। इस कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से माता के दर्शन करने यहां आता है मां उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
मां के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ आदि सहित कई पर्वत श्रृखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल भर खुले रहते हैं।
सुरकंडा देवी मंदिर की एक खास विशेषता यह बताई जाती है कि यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं। ये पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इन पत्तियों से घर में सुख समृद्धि आती है। क्षेत्र में इसे देववृक्ष या देवदार का दर्जा हासिल है। इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।
गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है। जहां गंगादशहरे पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।