चंबा: संस्कृति संरक्षण के संदेश के साथ घर घर भैला पहुंचा रहे यहां के युवा
रैबार डेस्क: देवभूमि उत्तराखंड (Devbhoomi Uttarakhand) में बग्वाल (दीपावली) (Deepawali) का उत्सव शुरू हो गया है। बग्वाल और दीपावली के 11 वें दिन मनाया जाने वाला ऐतिहासिक पौराणिक इगास पर्व पर पहाड़ में भैला (Bhaila) या भैलो खेला जाता है। आधुनिकीकरण के दौर में हमारी ये पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत विलुप्त होती जा रही हैं। लेकिन आज भी कुछ जुनूनी युवा हैं जो हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए खड़े हैं।
दरअसल टिहरी के चंबा कस्बे में युवा हों या बुजुर्ग, भैला परंपरा को संरक्षित करने के प्रयास कर रहे हैं। आप चंबा से ऋषिकेश की ओर आ रहे हैं तो कुछ किलोमीटर की दूरी पर आपको सड़क किनारे दो युवक मिलेंगे जो हमारी विलुप्त होती “भैला” संस्कृति को संरक्षण के लिए भैला के गट्ठे बेच रहे हैं। चंबा बाजार में स्कूटर पर एक व्यक्ति को भैला के गट्ठे को ले जाते हुए भी देखा जा सकता है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इन तस्वीरों की जमकर तारीफ हो रही है।
क्या है भैला
पहाड़ में दीपावली यानी बग्वाल के समय और दीपावली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाली देव दीपावली यानी इगास के दिन भैला घुमाने की परंपरा रही है। लकड़ी के पतले पतले टुकड़ों को एक गठरी में बांधकर उस पर आग लगाई जाती है। और रस्सी के सहारे आग के इस गठरी को सिर के ऊपर या शरीर के दाएं बाएं ओर घुमाया जाता है घुमाया जाता है। इस दौरान पारम्परिक ढोल दमाऊ की धुनों पर लोग नाचते गाते हैं। भैला से संसार मे सभी की सुख समृद्धि और कल्याण की कामना की जाती है। इसी को भैला परंपरा कहा जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि इस तरह आग के गोले को घुमाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी कष्ट दूर होते हैं।
संस्कृति के साथ स्वरोजगार का भी जरिया
इस भैला के लिए बहुत दूर दूर तक भटकना पड़ता है। लेकिन चंबा के ये लोग आपके घर घर तक भैला पहुंचा रहे हैं। इससे इनको भी कुछ दिन का ही सही, रोजगार मिल जाता है। चंबा और आसपास के लोगों में भैले कि जबरदस्त डिमांड दिख रही है।