2024-04-20

खटीमा गोलीकांड के 26 साल, पुलिस की बर्बरता से प्रदेशभर में सुलग गई क्रांति की चिंगारी

रैबार डेस्क : उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना खटीमा गोलीकांड की आज 26वीं बरसी है। 25 साल पहले आज ही के दिन अलग राज्य के लिए शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे आंदोनकरायों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक गोलिया चलाई जिसमें 7 लोगों की जानें गईं। इस गोली कांड के बाद आंदोलन की आग और भड़क उठी और लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। अथक संघर्षों और बलिदानों के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड (Uttarakhand) एक अलग राज्य के रुप में अस्तित्व में आ गया। खटीमा गोलीकांड (Khatima Golikand Massacre) की बरसी पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शहीद आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि दी है।

सीएम ने लिखा है, – खटीमा गोलीकांड में शहीद राज्य आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में अपने प्राणों की आहुति देने वाले राज्य आंदोलनकारियों के बलिदान का सम्मान और शहीद आंदोलनकारियों के सपनों के अनुरूप समृद्ध और प्रगतिशील उत्तराखंड बनाने के हम लिए संकल्पबद्ध है।

शहीदों की याद में हर वर्ष एक सितंबर को खटीमा स्थित शहीद पार्क में शहीद दिवस मनाया जाता है। उत्तराखंड के इतिहास में बर्बरता की इस घटना को जब भी याद किया जाता है तो हर एक उत्तराखंडी शहीदों के सम्मान में सिर झुकाकर आभार जताता है।

ऐसे हुआ खटीमा कांड

साल 1994 में अलग राज्य उत्तराखंड की मांग जोर पकड़न लगी थी। जगह जगह शांतिपूर्ण प्रदर्शन औऱ जुलूस निकाले जा रहे थे। एक सितंबर 1994 को उत्तराखंड में काले दिन के रूप में याद किया जाता है। उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सुबह से हजारों की संख्या में लोग खटीमा की सड़कों पर आ गए थे। इस दौरान ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनसभा हुई, जिसमें बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक शामिल थे। उनकी शांतिपूर्ण आवाज दबाने के लिए पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए निहत्थे उत्तराखंडियों पर गोली चलाई थी, जिसमें सात राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे, जबकि कई लोग घायल हुए थे। जिसके बाद ही उत्तराखंड आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी। इसी का परिणाम है कि अगले दिन यानी दो सितंबर को मसूरी में भी पुलिस ने बर्बरता की हदें पार की और निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। इन घटनाओं के बाद राज्य निर्माण आंदोलन एक बड़े जन आंदोलन के रूप में बदल गया।

जनसभा के बाद दोपहर का समय रहा होगा, सभी लोग जुलूस की शक्ल में शांतिपूर्वक तरीके से मुख्य बाजारों से गुजर रहे थे। जब आंदोलनकारी कंजाबाग तिराहे से लौट रहे थे तभी पुलिस कर्मियों ने पहले पथराव किया, फिर पानी की बौछार करते हुए रबड़ की गोलियां चला दीं। उस समय भी जुलूस में शामिल आंदोलनकारी संयम बरतने की अपील करते रहे। इसी बीच अचानक पुलिस ने बिना चेतावनी दिए अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप प्रताप सिंह मनोला, धर्मानंद भट्ट, भगवान सिंह सिरौला, गोपी चंद, रामपाल, परमजीत और सलीम शहीद हो गए और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। उस घटना के करीब छह साल बाद राज्य आंदोलकारियों का सपना पूरा हुआ और उत्तर प्रदेश से अलग होकर नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के रूप में नया राज्य अस्तित्व में आया। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed