पहाड़ लौटे प्रवासियों को CM का रैबार,अपणी माटी का वास्ता कुछ करा, सरकार देलि साथ
देहरादून: पूरी दुनिया कोरोना की मार से बेहाल है वहीं उत्तराखंड के गांवों के लिए कोरोना एक तरह से वरदान भी साबित हो सकता है। दरअसल कोरोना महामारी के बीच हजारों की संख्या में प्रवासी उत्तराखंडी अपने गांव लौटे हैं। इस वजह से आजकल खाली पड़े वीरान गांवों में रौनक लौटी है। सबसे ज्यादा प्रवासी पौड़ी जिले में लौटे हैं। कुल मिलाकर 65 हजार के करीब प्रवासी घर लौटे हैं।
अब ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि ये प्रवासी आने वाले समय में शायद ही अपनी माटी छोड़कर दूसरे राज्यों में जाएं। अगर ऐसा होता है तो यही प्रवासी अपने निर्जन होते गांवों को संवारने का प्रयास करेंगे, बंजर खेतों के हरा भरा बनाएंगे, और पलायन के चलते बर्बाद होती ग्रामीण संस्कृति को फिर से आबाद करेंगे। सूबे की त्रिवेंद्र सरकार भी इस दिशा में गंभीरता से विचार कर रही है। ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग घर लौटे प्रवासियों से बातचीत कर उन्हें रोके खने के लिए विचार कर रहा है।
इस बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी आगे आते हुए घर लौटे ऐसे तमाम प्रवासियों के लिए गढ़वाली में एक पत्र लिखा है, और आग्रह किया है कि क्यों न गांवों को फिर से आबाद करने की पहल की जाय।
सीएम ने लिखा है कि उत्तराखंडी मेहनतकश और ईमानदार होते हैं,अपनी मेहनत से उत्तराखंडी नेकई राज्यों और शहरों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, अगर इतनी ही मेहनत पहाड़ के लिए की जाय तो उत्तराखंड की तस्वीर बदल सकती है।
सीएम त्रिवेंद्र ने कृषि और पारम्परिक अनाजों का महत्व बताते हुए लिखा है कि पहाड़ के कोदा, झंगोरा, भट्ट, गहत आदि अनाजों और शहद, भांग, गाय घी, बुरांस का जूस आदि की पूरी दुनिया में मांग है। तो क्यों नहीं घर लौटे प्रवासी इनके उत्पादन के बारे में सोचते। सीएम ने लिखा है कि स्वरोजगार के लिए भी सरकार ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना, होमस्टे, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन,सगंध खेती,आदि योजनाएं चलाई हैं, इनके तहत उत्पादन को प्रोत्साहित करने के साथ मार्केटिंग की व्यवस्था भी कराई जा रही है। सीएम ने अपील की है कि घर लौटे प्रवासी इन बातों पर अवश्य अमल करें और सरकार के साथ संवाद करें। वो उत्तराखंड में जो भी करना चाहते हैं सरकार निश्चित रूप से उनकी मदद करेगी। सीएम ने लिखा है कि उत्तराखंड को आत्मनिर्भर बनाने में प्रवासियों की बड़ी भूमिका हो सकती है और उनकी मदद के लिए सरकार हर समय तैयार है।
प्रवासियों की राय जानने और उनसे संपर्क स्थापित करने के लिए अपने पत्र में मुख्यमंत्री ने अजीविका कार्यालय के फोन नम्बर और ईमेल भी शेयर की है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री के रैबार पर अमल करके घर लौटे प्रवासी अपनी माटी का मोल पहचानेंगे और सरकार को सुझाव देने के साथ पहाड़ की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठाएंगे।